ट्रांजिस्टर की जानकारी
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
ट्रांजिस्टर को डबल डायोड भी कहते हैं मुख्यतः जंक्शन टाइप ट्रांजिस्टर प्रयोग में आते हैं जंक्शन टाइप ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं
टाइप ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं
(1) N-P-N
NPN Transistor
(2) P-N-P
PNP Transistor
प्रत्येक ट्रांजिस्टर में तीन एलीमेन्ट्स होते हैं
(1) बेस (B)
(2) कलेक्टर (C)
(3) एमीटर (E)
NPN ट्रांजिस्टर-NPN ट्रांजिस्टर
में तीन सेमीकन्डक्टर
परतें होती हैं, जिनमें बीच
की परत 'P' टाइप बेस होती है
और बाहर की दोनों परतें 'N' टाइप एमीटर व कलेक्टर
कहलाती हैं NPN ट्रांजिस्टर में एमीटर निगेटिव वोल्टेज पर
और कलेक्टर को पोजिटिव वोल्टेज पर रखा जाता है
इसमें एमीटर
और बेस
के बीच में करेन्ट बहती है, परन्तु
बेस और कलेक्टर के बीच
करेन्ट नहीं
बहती
बेस पर भी कुछ पोजिटिव वोल्टेज दी जाती है, जिसका मान.
कलेक्टर पर दी गई पोजिटिव वोल्टता से कुछ कम होता है
इस प्रकार वोल्टेज देने से एमीटर से इलेक्ट्रॉन बेस की ओर
आकर्षित होते हैं जैसे-जैसे ये इलेक्ट्रॉन एमीटर की ओर से
बेस की ओर गतिमान होते हैं वैसे-वैसे बैटरी से और
इलेक्ट्रॉन एमीटर में प्रवेश करते जाते हैं इस प्रकार
इलेक्ट्रॉन के प्रवाह से एमीटर से बेस करेन्ट बहने लगती है
और इलेक्ट्रॉन्स एमीटर के पतले बेस क्षेत्र में से होते हुये
बेस कलेक्टर जंक्शन पर पहुंचकर कलेक्टर द्वारा एकत्रित
कर लिये जाते हैं इस तरह कलेक्टर करेन्ट एमीटर करेन्ट
से लगभग 95% से 99.6% तक होता है
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NPN-PNP |
PNP-ट्रांजिस्टर कैसे कार्य करता है- PNP
ट्रांजिस्टर में दो P-टाइप परतें होती है । यह
एमीटर और कलेक्टर कहलाती हैं। दोनों P-
टाइप परतों के बीच में एक पतली Nटाइप परत
होती है, जिसे बेस कहते है। इसमें बेस के
सापेक्ष एमीटर पोजिटिव होता है NP N और
PNP ट्रांजिस्टर की कार्य-विधि एक समान हीहै,
परन्तु PNP में अन्य विशेषताएं
निम्नलिखित हैं
(1) इस प्रकार के ट्रांजिस्टर में एमीटर, बेस जंक्शन में
करेन्टहोल्स (holes)द्वारा प्रवाहित होते
हैं। होल्स पोजिटिव चार्ज वाले होते हैं।
(2) बेस के पतला होने से अधिकांशतः होल्स कलेक्टर तक पहुंच जाते हैं और इन होल्स का कुछ भाग (लगभग 5%) बेस क्षेत्र के मुक्त इलेक्ट्रॉन्स से भी मिल जाता है।
(3)NPNट्रांजिस्टर के अन्दर करेन्ट होल्स द्वारा एमीटर से कलेक्टर की ओर प्रवाहित होता है, जबकि बाहरी सर्किट में करेन्ट इलेक्ट्रॉन द्वारा प्रवाहित होता है।
जर्मेनियम व सिलिकॉन ट्रांजिस्टर में मुख्य अन्तर-
जर्मेनियम व सिलिकॉन निर्मित ट्रांजिस्टर में मुख्य अन्तर निम्न प्रकार हैं जर्मेनियम ट्रांजिस्टर
प्रायः मैटेलिक बॉडी में ही होते हैं, जैसे AC127,AC188 इत्यादि, जबकि सिलिकॉन ट्रांजिस्टर मैटेलिक तथा सिलिका दोनों प्रकार की बॉडी में होते हैं, जैसे BC147,BU205, इत्यादि वर्तमान समय में
सिलिकॉन प्रकृति के अन्दर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जबकि
जर्मेनियम बहुत कम मात्रा में उपलब्ध होने के
कारण जर्मेनियम निर्मित ट्रांजिस्टर अत्यधिक
महंगे हैं। जर्मेनियम ट्रांजिस्टर की तुलना में
सिलिकॉन ट्रांजिस्टर सस्ते होते हैं। सिलिकॉन
में मुख्यतः NPN ट्रांजिस्टरों का
उत्पादन सस्ता होता है।
(3) सिलिकॉन ट्रांजिस्टरों
में लीकेज धारा जर्मेनियम की अपेक्षा कम होती है और यह अधिक तापक्रम पर कार्य कर
सकता है।
(4) सिलिकॉन ट्रांजिस्टर
जर्मेनियम की अपेक्षा हाई-फ्रीक्वेन्सी पर श्रेष्ठतम कार्य कर सकता है।
ट्रांजिस्टर का संकेत-PNP और NPN ट्रांजिस्टर के संकेत
में विशेष अन्तर यह होता है कि यदि एमीटर P-टाइप पदार्थ का बना हुआ
है तो तीर का निशान बेस के अन्दर की ओर संकेत करेगा। में PNP ट्रांजिस्टर का संकेत
देखें । इसी प्रकार यदि एमीटर N टाइप पदार्थ का बना है
तो तीर का निशान बेस से बाहर की ओर संकेत देगा।
में NPN ट्रांजिस्टर का संकेत दर्शाया गया है।
ट्रांजिस्टर सर्किटोंके सिद्धान्त
ट्रांजिस्टर का मुख्य कार्य सिगनल शक्तिशाली करना है। ट्रांजिस्टर के बेस,एमीटर
और कलेक्टर को अलग-अलग इनपुट के आधार पर आउटपुट प्राप्त कर ट्रांजिस्टर सर्किट को
तीन श्रेणी में बांटा गया है
(1) कॉमन कलेक्टर या एमीटरफॉलोअर सर्किट-
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कॉमन कलेक्टर सर्किट |
इस सर्किट में कलेक्टर इनपुट व आउटपुट दोनों के लिये कॉमन होता है।
इनपुट सिगनल बेस और कलेक्टर में देते हैं और आउटपुट एमीटर और कलेक्टर से प्राप्त
करते हैं। इस सर्किट में आउटपुट वोल्टेज एमीटर से ली जाती है। इसलिये इस सर्किट को
एमीटर फॉलोअर भी कहते हैं ।इस सर्किट से मिलने वाला एम्प्लीफिकेशन बहुत कम होता
है। अतः इस सर्किट का बहुत कम प्रयोग होता है।
(2) कॉमन एमीटर अथवा ग्राउण्ड एमीटर
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कॉमन एमीटर सर्किट |
सर्किट- इस सर्किट में इनपुट व आउटपुट के
लिये एमीटर कॉमन होता है। इस सर्किट का
आजकल सर्वाधिक प्रयोग होता है। इनपुट
सिगनल बेस और एमीटर के बीच और आटपुट
कलेक्टर व एमीटर के बीच प्राप्त करते है। इस
सर्किट में अधिकतम एम्प्लीफिकेशन प्राप्त होता है।
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कॉमन बेस सर्किट
(3)ट्रांजिष्टर का एम्प्लीफायर में प्रयोग-
ट्रांजिस्टर द्वारा अनेक कार्य प्राप्त किये
जा सकते हैं। संकेतों का मान बढ़ा देना या
सिगनलों का एम्प्लीफिकेशन करना, ऑसीलेशन
उत्पन्न करना और फ्रीक्वेन्सी बदलना इत्यादि
इसके
मुख्य कार्य है।
एम्प्लीफायर सर्किटों में NPNऔर PNP दोनों प्रकार के
ट्रांजिस्टरों का प्रयोग देखा जा सकता है।
एक ट्रांजिस्टर के प्रयोग से बना एम्प्लीफायर
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एक ट्रांजिस्टर के प्रयोग से बना एम्पलीफायर |
उपरोक्त में NPN ट्रांजिस्टर प्रयुक्त एक एम्प्लीफायर का सर्किट दर्शाया गया है। इनपुट सिगनल C-1 द्वारा ट्रांजिस्टर के बेस पर प्राप्त होता है। R-1 व R-2 सीरीज में बेस बायसिंग के लिये प्रयोग की गई है। R-3 का मान R-1 से कम होता है, क्योंकि NPN ट्रांजिस्टर के बेस को कम पोजिटिव व अधिक निगेटिव सप्लाई देते हैं। ट्रांजिस्टर के कलेक्टर को रिवर्स बायस R-2 द्वारा प्राप्त करते हैं | TR-1 के कलेक्टर से एम्प्लीफाइड आउटपुट सिगनल की आउटपुट C-
3 द्वारा प्राप्त करते हैं।
कैसकेड (Cascade)एम्प्लीफायर-
एक
ट्रांजिस्टर प्रयुक्त एम्प्लीफायर द्वारा प्रायः आवश्यक एम्प्लीफिकेशन प्राप्त
नहीं होता। अतः पर्याप्त एम्प्लीफिकेशन प्राप्त करने के लिये एक से अधिक ट्रांजिस्टर
प्रयुक्त एम्प्लीफायर या दो या दो से अधिक एम्प्लीफायर स्टेज प्रयोग करते हैं।
इसमें पहले ट्रांजिस्टर से प्राप्त आउटपुट सिगनल को दूसरे ट्रांजिस्टर का इनपुट
सिगनल बनाकर और अधिक एम्प्लीफाइड करते हैं। इस प्रकार कैसकेड एम्प्लीफायर से अधिक
एम्प्लीफिकेशन प्राप्त किया जा सकता है।
में दो NPN ट्रांजिस्टर
प्रयुक्त R-C कपल्ड सर्किट दर्शाया गया है। ट्रांजिस्टर T-1 द्वारा एम्प्लीफाइड सिगनल C-3 द्वारा
ट्रांजिस्टर TR-2 के बेस पर प्राप्त होते हैं और ट्रांजिस्टर TR-2 द्वारा
एम्प्लीफाइड सिगनल C-5 द्वारा प्राप्त करते हैं R9व C-6 डी-कपलिंग के लिये
प्रयोग किये गये हैं। यहां डी-कपलिंग सर्किट एक फिल्टर सर्किट का कार्य करता है, जिससे पावर सप्लाई की
आन्तरिक बाधा पर उत्पन्न संकेत प्रथम ट्रांजिस्टर तक नहीं पहुंचते हैं
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कैसकेड एम्प्लीफायर |
कैसकेड एम्प्लीफायर फीड
बैक (Feed
Back) क्या है ?-जब भी आउटपुट सिगनल का एक अंश इनपुट को वापिस
(Back)
किया
जाता है तो इस क्रिया को फीड बैक कहते हैं। फीड बैक पोजिटिव व निगेटिव दो प्रकार
की होती है। पोजिटिव फीड बैक आउटपुट सिगनल को बढ़ाता है जबकि निगेटिव फीड बैक से
एम्प्लीफायर का डिस्टार्शन (विकृति) कम, गेन स्थाई प्राप्त होना
और एम्प्लीफायर से उत्पन्न शोर कम प्राप्त होता है। अधिकतर निगेटिव फीड बैक का ही
प्रयोग किया जाता है। अतः यहां केवल निगेटिव फीड बैक के विषय में विवरण दिया गया
है। निगेटिव फीड बैक दो प्रकार की होती है
(1) सीरीज फीड बैक (2) शंट फीड बैक
में शंट फीड बैक
प्रयुक्त सर्किट दर्शाया गया है। यहां R-2 बेस को बायस देने के
साथ-साथ ट्रांजिस्टर के कलेक्टर से बेस को फीड बैक देती है।
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
ट्रांजिस्टरों के सिरे पहचानना
प्रत्येक NPNऔर PNP ट्रांजिस्टर में बेस, कलेक्टर
और एमीटर सिरे होते हैं। इन तीनों सिरों को
पहचानने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। मुख्य
तरीके निम्न प्रकार हैं|
(1) पुराने प्रकार के प्लेनर
ट्रांजिस्टर के तीनों सिरे प्रायः एक ही पंक्ति में होते
हैं। इसमें एमीटर और बेस के सिरे पास-पास होते
हैं। लेकिन बेस और कलेक्टर सिरे के बीच कुछ दूरी
होती है। कलेक्टर वाले सिरे के निकट एक लाल या
काली बिन्दी लगी होती है। प्रैक्टिकल नम्बर
OC139, OC140, OC147 इत्यादि
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
(2) कुछ ट्रांजिस्टर के तीनों इलैक्ट्रॉड
के अनुसार त्रिभुजाकार होते हैं और बेस बीच में
होता है । इस प्रकार के ट्रांजिस्टर में कलेक्टर
के पास कोई बिन्दु दिया होता है और बेस बीच
में होता है | AC128, AC187, AC188, BC177,
AC127, SL100 इत्यादि इसके उदाहरण हैं।
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
(3) यदि किसी ट्रांजिस्टर में चार इलेक्ट्रॉड हों
और सभी एक लाइन में के अनुसार हों और
जिसमें जिस तार की दूरी दूसरे तार से अधिक
होती है वह तार कलेक्टर होता है।कलेक्टर के
अतिरिक्त S(शील्ड), B. (बेस), E (एमीटर) होते
हैं। S(शील्ड) ट्रांजिस्टर कीबॉडी से जुड़ा होता है,
जिसे प्रायः अर्थ करदेते हैं |AF115 ट्रांजिस्टर इसका उदाहरण है।
अनुसार तीन तार एक लाइन मैं हो तो वहां क्रमश E, S, C, होगी
व चौथी तार बेस (B) होगी। कलेक्टर के पास
प्रायः डॉट का निशान भी बना होता है, जैसे
2SA3241 1
(5) जब किसी ट्रांजिस्टर की बॉडी
से एक मेटेलिक टिप बाहर निकली हुई हो तो
वह मेटेलिक पत्ती के निकट की इलैक्ट्रॉड
एमीटर दर्शाती है। बीच का बेस तथा तीसरा
कलेक्टर होता है | BD115, 2N2906, BF177,
BF178, BF179, 2N2905, 2N4036 इत्यादि
इसके उदाहरण हैं
(6) जब किसी ट्रांजिस्टर में चार तार हों और मैटेलिक टिप भी हो तो
उस ट्रांजिस्टर के बेस, कलेक्टर, एमीटर व शील्ड तारें दो प्रकार से ज्ञात करेंगे।
(A) के अनुसार, BF115, BF185, AF127,
AF126, AF121, CAF124,BF184, BF167 आदि ।
(B) के अनुसार 2N918, 2N3570, BF180,
BF181, BF182, BF183,2N6113 आदि।
(7) प्रायः सिलिकॉन ट्रांजिस्टर अर्द्ध-गोलाकार देखे जा सकते हैं । उनको के अनुसार देखने पर C,B,E एक कतार में प्राप्त होंगे | BC147, BC148, BC149, | BC15 7,
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
BEL188, BEL187 इसके उदाहरण हैं। इन सभी में बेस हमेशा बीच में
होता है। TUB 4 (8) BEL कम्पनी
द्वारा बने एपीटेक्शियल ट्रांजिस्टर जिनकी बनावट निम्न प्रकार है, उन्हें नम्बर के अनुसार पहचानेंगे।
(A) के अनुसार BC147, BC148, BC149,
BC158 आदि के बेस बीच 1 में होता है। वा (B)
के अनुसार CF197, BF195C. BF194, BF 195D.
BF167 आदि में एमीटर बीच में होता है।
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
(9) पावर ट्रांजिस्टर प्रायःमेटेलिक बॉडी से बने होते है और इनमें दो इलेक्ट्रॉड निकली होती हैं, जो क्रमशः बेस और एमीटर होती हैं तथा इनकी मेटेलिक बॉडी कलेक्टर होती है। AD149,AD162, 2N3055, BU205, BU208, 2SD368 इत्यादि इसके उदाहरण हैं। बेस तथा एमीटर को पहचानने का सर्वोतम
तरीका यह है कि इस प्रकार के ट्रांजिस्टर के
दोनों सिरों पर छिद्र होतेहैं। जिस छिद्र से इन
दोनों इलैक्ट्रॉड की दूरी सबसे कम हो उस छिद्र
को अपनी ओर
रखें तो बायीं तरफ वाला एमीटर और दायीं तरफ वाला बेस होगा।
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
(10)जो ट्रांजिस्टर के अनुसार होते हैं उनमें प्रायः B, C,E लिखे रहते हैं। BUT56, 2N6110, 2N5296 इसके उदाहरण हैं।
(11) कुछ ट्रांजिस्टरों के नम्बर के बाद Dलिखा
होता है, जैसे BU208D,2SD868Dआदि । इस
प्रकार के ट्रांजिस्टर हाई वोल्टेज और हाई
करेन्ट के लिये होते हैं। मुख्यतः ये पावर
सप्लाई या टी. वी. के हौरीजोन्टल आउटपट
विभाग में प्रयोग होते देखे जा सकते हैं
(12) जेपिनिस
ट्राजिस्टरों की एक पद्धति में ट्रांजिस्टरों के नम्बर 25 से प्रारम्भ होते हैं और
उसके पश्चात् A, B,C और Dलिखा होता है। इसके बाद
अंकों में नम्बर -लिखे होते हैं; जैसे 2SD868, 2SC107, 2SD1206, 2SA526,2SA940 आदि | 2S के बाद लिखा A,B.C, Dअक्षर ट्रांजिस्टरों की
विशेषता दर्शाता है | Aअक्षर वाले ट्रांजिस्टर केवल PNP होते हैं और
हाई-फ्रीक्वेन्सी में प्रयोग होते हैं। इसी प्रकार Bअक्षर वाले ट्रांजिस्टर PNP होते हैं और ये
लो-फ्रीक्वेन्सी सर्किटों में प्रयोग किये जाते हैं। C अक्षर वाले ट्रांजिस्टर NPN होते हैं। इन्हें
हाई-फ्रीक्वेन्सी के लिए प्रयोग में लाया जाता है
और
इसी प्रकार D अक्षर
वाले ट्रांजिस्टर NPNहोते हैं। ये लो-फ्रीक्वेन्सी के लिये प्रयोग होते
हैं। प्रायः इन ट्रांजिस्टरों में कलेक्टर बीच में होता है। यदि ट्रांजिस्टर के
साथ मेटेलिक बॉडी से जुड़ा है तो कलेक्टर का सम्बन्ध मेटेलिक बॉडी से जुड़ा होता
है। -यदि केवल ट्रांजिस्टरों के नम्बरों के प्रारम्भ में A, B, C,
D से ही लिखें हो तो उनके
- पहले 2S जोड़कर ही ट्रांजिस्टर
डॉटा से उनके बारे में जानकारी प्राप्त हो सकती है।
यदि
ट्रांजिस्टर लगाते समय इनके सिरे गलत लग जायें तो प्रायः ट्रांजिस्टर सही कार्य
नहीं करेगा या बिल्कुल कार्य नहीं करेगा और प्रायः ट्रांजिस्टर खराब होने की आशंका
भी रहती है।
यह कैसे ज्ञात करें कि यह टांजिस्टर जर्मेनियम है या सिलिकॉन-
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
आजकल अधिकतर
ट्रांजिस्टर विशेषतः सिलिकॉन में ही उपलब्ध हैं, परन्तु जर्मेनियम से बने
ट्रांजिस्टर मेटेलिक बॉडी में ही होते हैं; जैसे-AC187, AC188, AD149आदि, जबकि सिलिकॉन
ट्रांजिस्टर मेटेलिक और सिलिका दोनों ही प्रकार की बॉडी में होते हैं। सिलिका
बॉड़ी में उदाहरण है-BC147, BC148, BF194, BC158 आदि और मेटेलिक बॉडी में
2N3055,
BU205 आदि।
मल्टीमीटर द्वारा भी यह ज्ञात किया जा सकता है कि यह ट्रांजिस्टर जर्मेनियम
निर्मित है या सिलिकॉन। इसके लिये सैन्वा मल्टीमीटर को 1MO का रेंज रखकर प्राड
ट्रांजिस्टर के एमीटर और कलेक्टर सिरे के बीच रखें । सर्वप्रथम ट्रांजिस्टर के
एमीटर पर पोजिटिव प्राड और कलेक्टर पर मीटर की निगेटिव प्राड रखें तो मीटर की सुईं
कम चलेगी अर्थात् हाई रैजिस्टेन्स बतायेगी और इसी प्रकार एमीटर पर निगेटिव और
कलेक्टर पर पोजिटिव प्राड रखने पर मीटर की सुईं अधिक चले अर्थात् मीटर इस बार लो
रैजिस्टेन्स दर्शाए तो यह ट्रांजिस्टर जर्मेनियम निर्मित है। लेकिन यदि दोनों
स्थितियों में प्राड रखने पर मीटर की सुई न चले अर्थात् हाई रैजिस्टेन्स बताए तो
वह सिलिकॉन ट्रांजिस्टर होगा।
डायोड
की पहचान- प्रत्येक डायोड में केवल दो इलेक्ट्राड-कैथोड और एनोड होते हैं। डायोड
के कैथोड सिरे की ओर प्रायः के अनुसार गोलाई था धारी बनी होती है।
हीट सिक (Heat Sink)
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ट्रांजिस्टर की जानकारी Transistor information |
प्रायः पावर ट्रांजिस्टर इत्यादि हाई वोल्टेज प्रवाहित होने पर या अधिक
करेन्ट । पर गर्म हो जाते हैं। ट्रांजिस्टर इत्यादि तापक्रम के प्रति अति
संवेदनशील होते है। ये अधिक ताप सहन नहीं कर सकते । गर्म होने के कारण ट्रांजिस्टर
की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। अतः ताप को नियन्त्रित रखने के
अतिरिक्त उत्पादित ऊष्मा या ताप का विसरण आवश्यक हो जाता है। अतिरिक्त ताप को
विसरित करने के लिये ट्रांजिस्टरों के ऊपर धातु के कवर इत्यादि चढ़ाना हीट सिंक
कहलाता है। हीट सिंक अपने अन्दर पर्याप्त ऊष्मा सोख लेता है और ट्रांजिस्टर की
सुरक्षा करता है। कुछ ट्रांजिस्टर मेटेलिक चैसिस पर लगाये जाते हैं। इस स्थिति में
सम्पूर्ण चैसिस हीट सिंक का कार्य करती है। कभी-कभी ट्रांजिस्टर की बॉडी ही इस
प्रकार की बनाई जाती है कि वह ताप सहने में सक्षम होती है।
किसी-किसी ट्रांजिस्टर में हीट सिंक को सीधे ट्रांजिस्टर के कलेक्टर या
एमीटर से भी जोड़ देते हैं, जिससे
उत्पन्न ताप को हीट सिंक अधिक मात्रा में क्षय कर सके। जैसे BU205 ट्रांजिस्टर मेटेलिक बॉडी से बना होता है और उसकी मेटेलिक बॉडी उसका
कलेक्टर होती है जिस पर अतिरिक्त हीट सिंक भी बनाई जाती है। इस प्रकार हीट सिंक
कलेक्टर के सम्पर्क में रहती है। कुछ हीट सिंक की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिये
उन्हें काले रंग में एनोडाइज भी करते हैं।
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