Solar iron battery technology hindi
सोलर आयरन और बैटरी की जानकारी
Solar iron and battery information hindi
सोल्डरिंग Solar iron battery technology (Soldring)
जिस प्रकार किसी धातु को जोड़ने के लिए वैल्डिंग की जाती है,
उसी प्रकार प्रिन्टिड सर्किट बोर्ड या चैसिस पर कम्पोनेन्ट लगाते
समय छोटे-छोटे, जोड़ों और टर्मिनल्स को जोड़ने के लिये
सोल्डरिंग करते हैं सोल्डरिंग करते समय निम्नलिखित सामान की
आवश्यकता होती है
(1)
सोल्डरिंग आयरन
(2)
फ्लक्स या पेस्ट
(3)
सोल्डर वायर
सोल्डरिंग आयरन (Soldering Iron)-
रेडियो, टेलीविजन व अन्य इलैक्ट्रॉनिक्स और इलैक्ट्रिकल
उपकरणों में कनैक्शन करने व जोड़ लगाने के लिये सोल्डरिंग
आयरन की आवश्यकता होती है चित्र में सोल्डरिंग आयरन
दर्शाया गया है सोल्डरिंग आयरन में कॉपर बिट को नायक्रोम
वायर से बने एलीमेन्ट द्वारा गर्म करते हैं सोल्डरिंग आयरन में
कॉपर बिट ही इसलिए प्रयोग करते हैं, क्योंकि कॉपर ताप उत्पन्न
करने के लिए अच्छा चालक है
प्रायः 15W, 25W, 35W और 65w 100w के आयरन प्रयोग में आते हैं
आयरन की वाटेज के अनुसार एलीमेन्ट और बिट प्रयोग होती हैं
एलीमेन्ट सोल्डरिंग आयरन का मुख्य भाग होता है जिसके खराब
हो जाने पर सोल्डरिंग आयरन कार्य करना बन्द. कर देता है
सोल्डरिंग आयरन को पकड़ने के लिये उसमें हैण्डिल लगा होता
है अधिकतर बैकेलाइट या लकड़ी के बने हैण्डिल प्रयोग होते हैं
जब मेन प्लग को ए." सी. से जोड़ते हैं तो एलीमेन्ट अपनी वाटेज
रेटिंग के अनुसार ताप उत्पन्न करते हैं आयरन को मेन लाइन से
जोड़ देने के पश्चात् सबसे पहले एलीमेन्ट आयरन बिट को गर्म
करता है, बिट की नोंक से सोल्डर वायर को पिघलाकर टांके
लगाते हैं सोल्डरिंग आयरन के अतिरिक्त सोल्डरिंग कार्य के लिये
सोल्डरिंग गन भी प्रयोग करते हैं, जो सोल्डरिंग आयरन की तुलना
में बहुत महंगी होती है थोक उत्पादन कार्यों के लिए फैक्ट्रियों में
डीप सोल्डरिंग का प्रयोग भी किया जाता है कैल्कुलेटर्स,
कम्प्यूटर, इत्यादि में वेव सोल्डरिंग का प्रयोग किया जाता है डीप
सोल्डरिंग और वेव सोल्डरिंग जैसी आधुनिक पद्धतियों से फैक्ट्रियों
में प्रतिदिन हजारों की मात्रा में पी. सी. बी. सोल्डरिंग की जाती हैं
सोल्डर वायर (SolderWire)
सोल्डर वायर तापक्रम के अनुसार अनेक प्रकार की आती है
लेकिन मध्यम तापक्रम के लिये 60%tin और 40%lead मिश्रित
सोल्डर वायर प्रयोग करते हैं यह अधिकांशतः 14SWG,16
SWGऔर 18SWG में आती हैं इस प्रकार के सोल्डर वायर भी
आते हैं जिनमें rasin flux भरा होता है
सोल्डरिंग पेस्ट या फ्लक्स (Soldering Flux)
सोल्डरिंग पेस्ट एक रासायनिक पदार्थ है जो टांके लगाने वाली
सतह को ऑक्साइड कोटिंग से दूर रखता है फ्लक्स की सहायता
सोल्डरिंग करते समय ध्यान दें
(1)
सोल्डरिंग
से पूर्व जोड़ों की सतह (surface) अच्छी प्रकार से
साफ कर लें कम्पोनेन्ट्स और तार इत्यादि के सिरें की
विद्युतरोधी पर्तों को ब्लेड से साफ कर लें
(2)
सोल्डरिंग करते समय जोड़ इत्यादि को गर्म करके उसके
ऊपर सोल्डर लगायें सोल्डर इतना गर्म हो जाना चाहिए कि वह
बहकर जोड़ने वाली सतह में पूरी तरह भर जाये फ्लक्स से उठने
वाले धुएं को सूंघना नहीं चाहिये, क्योंकि इस धुएं में जहरीली गैस
होती है
(3) ट्रांजिस्टर, आई. सी. इत्यादि की सोल्डरिंग करते समय
सोल्डरिंग आयरन को कम से कम समय तक ट्रांजिस्टर या आई.
सी. की पिनों पर रखें अन्यथा आई. सी. व ट्रांजिस्टर इत्यादि
अधिक तापक्रम पर खराब हो सकते हैं अधिक तापक्रम पर
PCB ट्रैक भी उखड़ने का डर रहता है
(4) आक्सीकरण के कारण सोल्डरिंग आयरन की बिट काली तथा
मैली होने से वह सोल्डर वायर नहीं पकड़ती, जिसके लिए बिट को
साफ करना आवश्यक है इसी प्रकार नई बिट प्रयोग करते समय
या बिट पर सोल्डर लगाने पर सोल्डर वायर टपक जाती है, तो भी
उस समय बिट की नोंक रेती (file) से अवश्य घिसें सोल्डरिंग
आयरन को प्रयोग करने के बाद हमेशा आयरन स्टेण्ड में रखें
डि-सोल्डरिंग पम्प (De-soldering Pump)
सोल्डरिंग आयरन द्वारा लगाये गये टांके हटाने के लिये
डिसोल्डरिंग पम्प का प्रयोग करना चाहिए टांके को आयरन से
गर्म करके पिघली हुई सोल्डर को डिसोल्डरिंग पम्प द्वारा खींचलेते
हैं डिसोल्डरिंग कार्य के लिये डिसोल्डरिंग पम्प के अतिरिक्त
शील्ड या डिसोल्डरिंग वायर का प्रयोग कर सकते हैं
ड्राई सोल्डरिंग (Dry Soldering)
ड्राई सोल्डरिंग का अर्थ उस प्रकार कीसोल्डरिंग से है जिसमें
लगाये गये सोल्डर का हाई रैजिस्टेन्स बन जाता है सोल्डर वायर
लगाते समय सही प्रकार से उसके साथ फ्लक्स (flux) नहीं लगाया
जाता था 'सोल्डर वायर की घटिया क्वालिटी होने से, लगाई गई
सोल्डरिंग में एयर गेप (air gap) या पानी के कुछ कण बीच में रह
जाते हैं, जिसके कारण यह एक परत (layer) के रूप में होने के
कारण इसका मैग ओह्म में रैजिस्टेन्स बन जाता है
प्राइमरी सैल
इस प्रकार के सैलों में रासायनिक क्रिया से विद्युत ऊर्जा उत्पन्न
की जाती है और प्राइमरी सैल डिस्चार्ज होने के बाद प्रयोग नहीं
किये जा सकते ड्राई सैल इसके उदाहरण हैं
ड्राई सैल (Dry Cell) की रचना
वर्तमान समय में ड्राई सैल का प्रयोग सबसे अधिक होता है चित्र
में ड्राई सैल की संरचना दर्शायी गई है ट्रांजिस्टर,टेपरिकार्डर
व अन्य उपकरणों को चलाने के लिये ड्राई सैल की आवश्यकता
पड़ती है इसका बाहरी आवरण जिंक का बना होता है जो कि
निगेटिव टर्मिनल का कार्य करता है, जिसके बीच में एक कार्बन
रॉड होती है, जो पोजिटिव का कार्य करती है इस कार्बन रॉड के
चारों ओर मैंगनीज डाइ-ऑक्साइड, कार्बन का चूरा, अमोनियम
क्लोराइड और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बना घोल भर देते हैं
कार्बन की छड़ के ऊपर हाइपर ब्रास कैप लगी रहती है जो सैल
के बाहरी पोजिटिव टर्मिनल के रूप में प्रयोग होती है जब
मैंगनीज डाइ-ऑक्साइड का पेस्ट सूख जाता है तो सैल बेकार
(dead) हो जाता है
प्रायः इसकी वोल्टेज 1.4V से 1.5V तक होती है इसकी
आन्तरिक रैजिस्टेन्स | 0.2 से 0.30 तक होती है | छोटे साइज की
अपेक्षा बड़े साइज के सैल अधिक करेन्ट दे सकते हैं, लेकिन
इनकी करेन्ट कैपेसिटी साइज के अनुसार भिन्न रहती है जैसे-
जैसे सैल का साइज बढ़ता जायेगा, वैसे-वैसे उसकी करेन्ट
कैपेसिटी भी अधिक प्राप्त होगी
सैलों का संयोजन
सैल को सीरीज में लगाने पर उनकी वोल्टेज जोड़ते हैं इस प्रकार
यदि 1.5V के 3 सैल सीरीज में जोड़े जायें तो उनसे कुल मिलाकर
4.5V प्राप्त की जा सकती है सीरीज क्रम में चित्र के अनुसार
एक सैल का निगेटिव दूसरे सैल के पोजिटिव से जोड़ा जाता है
इस प्रकार सैल सीरीज में लगाने से प्रत्येक सैल में प्रवाहित करेन्ट
का मान तथा सर्किट में बहने वाले करेन्ट का मान एक समानप्राप्त
होता है और वोल्टेज सभी सैलों की वोल्टेज के योग के बराबर
सैलों को समानान्तर (parallel) में लगाने से एक सैल की वोल्टेज
पूरे ग्रुप की वोल्टेज होती है, अर्थात् यदि 1.5V के 9 सैल चित्र
के अनुसार समानान्तर में जोड़े जायें तो पूरे ग्रुप से केवल
1.5V प्राप्त होंगी लेकिन करेन्ट सभी सैलों की जुड़ जायेगी
समानान्तर क्रम में सभी सैलों के निगेटिव आपस में जुड़े होते हैं
मरकरी सैल (Mercury Cell)
मरकरी सैल को बटन सैल भी कहा जाता है, क्योंकि यह बहुत
छोटे आकार में होते हैं इनका प्रयोग प्रायः कैलकुलेटर श्रवण
यन्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स घड़ियां, इलेक्ट्रॉनिक्स खिलौने इत्यादि में प्रचुर
मात्रा में होता है मरकरी सैल का निगेटिव जस्ते और पारे के
यौगिक से बना होता है पोजिटिव मरक्यूरस ऑक्साइड से बनाते
हैं और पोटिशियम हाइड्राक्साइड व जिंक ऑक्साइड के मिश्रण से
बने पेस्ट को इलेक्ट्रोलाइट के रूप में प्रयोग करते हैं इनकी
विशेषता इनका छोटा आकार है प्रायः ये 1.5V के प्रयोग में आते
हैं
सैकेण्डरी सैल (Secondary Cell)
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Solar Cell |
सैकेण्डरी सैल को चार्ज करके उनकी एनर्जी वापस लाकर उसे
पुनः प्रयोग कर सकते हैं चार्जेबिल बैटरी सैकेण्डरी सैल के
उदाहरण हैं | चार्जेबिल बैटरी एक बार डिस्चार्ज या खर्च कर दिये
जाने के पश्चात् पुनः चार्ज की जा सकती है इन्हें डी. सी. करेन्ट
देकर चार्ज किया जाता है इनकी क्षमता प्राइमरी सैल की अपेक्षा
अधिक होती है विशेष प्रयोग में आने वाले चार्जेबिल बैटरी यासैल
सोलर सैल सूर्य की रोशनी या प्रकाश से प्राप्त ऊर्जा को
इलेक्ट्रिकल एनर्जी में बदलता है इसमें शुद्ध सिलिकॉन केक्रिस्टल
प्रयोग किये जाते हैं | जब भी इस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो
सैल की एक परत में इलेक्ट्रॉन्स अत्यधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते
हैं, जिससे उनमें निगेटिव चार्ज उत्पन्न .. हो जाता है और दूसरी
परत में पोजिटिव चार्ज उत्पन्न हो जाता है कैलकुलेटर इत्यादि में
सोलर सैल का प्रयोग देखा जा सकता है
निकिल कैडमियम सैल (NickelCadmium Cell)
यह एक चार्जेबिल सैल है इसे डिस्चार्ज होने के बाद पुनः चार्ज
किया जाता है यह लगभग 1000 बार चार्ज किया जा सकता है
इसकी निगेटिव प्लेट कैडमियम की होती है और पोजिटिव प्लेटके
लिये निकिल हाइड्रॉक्साइड प्रयोग करते हैं ये प्राय1.2V केप्रयोग
में आते है
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