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गुरुवार, 28 मई 2020

Transformer and coil information

         इन्डक्टैन्स (Inductance)

                       
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Transformer and coil information
  

सामान्यतः इन्डक्टैन्स खोखले फार्मर पर 

चालक की तार के कुछ टर्न्स लपेटकर बनाये 

जाते हैं, जिन्हें क्वाइल या इन्डक्टर कहते हैं।। 

इन्डक्टैन्स क्वाइल का वह गुण है, जो करेन्ट 

मान परिवर्तनों का विरोध करता है। जब किसी 

चालक में आल्टरनेटिंग करेन्ट (AC) प्रवाहित 

करते हैं तो उस चालक के चारों ओर साधारण

रूप से निरन्तर परिवर्तित होने वाला चुम्बकीय 


क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। जब कोई चालक 


चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उस सर्किट 


में फ्लक्स में परिवर्तन होता है। इसके कारण 

चालक में ई. एम. एफ. पैदा हो जाता है।यदि 

चुम्बकीय क्षेत्र की लाइन ऑफ फ्लक्स (flux) 

चालक द्वारा काटी जाती है तो इस स्थिति में 
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Inductance










चालक में ई. एम. एफ. पैदा होता है, जिसे 

इन्ड्यूस्ड ई. एम. एफ. कहते हैं।

सैल्फ इन्डक्टैन्स किसी सर्किट का वह गुण 

होता है जब किसी चालक में आल्टरनेटिंग 

करेन्ट बहाई जाये। उसके आसपास 

परिवर्तनशील चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होने से 

सर्किट में ई. एम. एफ. पैदा हो जाता है, जिसे 



सैल्फ इन्ड्यूस्ड ई. एम. एफ. (Electro motive force) कहते हैं। सैल्फ इन्ड्यू स्ड से 


सम्बन्धित लेज के सिद्धान्त के अनुसार 

इन्ड्यूस्ड करेन्ट की पोलेरिटी इस प्रकार होती 

है कि वह जिस चुम्बकीय क्षेत्र में परिवर्तन से 


बनती है उसी के परिवर्तन का विरोध करती है।

हाई-फ्रीक्वेन्सी को पास करने के लिये कम 

मान का कन्डेन्सर और लो-फ्रीक्वेन्सी को 

बाइपास करने के लिये अधिक मान का 

कन्डेन्सर प्रयोग करते हैं। जैसे-जैसे क्वाइल 

का इन्डक्टेन्स बढ़ता जायेगा वह लो तरंग को 

पास करेगी और इसके विपरीत क्वाइल का 

इन्डक्टेन्स कम होने पर वैसे-वैसे वह हाई 

फ्रीक्वेन्सी पास करेगी। इसी प्रकार किसी तार 

की मोटाई के अनसार ही मोटे तार की क्वाइल 

से हाई-फ्रीक्वेन्सी तथा बाराक तार की क्वाइल 

से लो-फ्रीक्वेन्सी पास होती है।



 म्यूच्युअल इन्डक्शन (Mutual Induction)

म्यूच्युअल इन्डक्शन दो क्वाइलों या वाइन्डिंग 

का वह गुण है जो करेन्ट मान परिवर्तनों का 

विरोध करता है। जब किसी चालक में करेन्ट 

बहता है तो उसके आसपास चुम्बकीय क्षेत्र बन 

जाता है और दूसरी क्वाइल जो निकट हो और 

वह पहली क्वाइल के चुम्बकीय क्षेत्र से 

प्रभावित हो तो दूसरी क्वाइल में करेन्ट 

प्रवाहित होने पर उसको म्यूच्युअल इन्डक्टैन्स कहते हैं।


इकाई (Unit)-इन्डक्टैन्स का प्रतीक L तथा 


मात्रक हैनरी (H) होता है। हैनरी की छोटी 


बड़ी इकाइयां निम्न प्रकार हैं

 एक हैनरी = 1000 मिली हैनरी (mH)

एक मिली हैनरी = 1000 माइक्रो हैनरी (LH)


 इन्डक्टैन्स को प्रभावित करने वाली बातें

 (1) क्वाइल के टर्न्स की संख्या-क्वाइल में 

जितने अधिक टर्न्स होंगे उस क्वाइल का 

इन्डक्टैन्स उतना ही अधिक होगा । क्वाइल 

का इन्डक्टैन्स अधिक होने से चुम्बकीय क्षेत्र 

भी बढ़ जाता है। और



(2) टर्न्स के बीच की दूरी-
यदि क्वाइल के टर्न्स 

पास-पास हैं तो उसका इन्डक्टैन्स अधिक 

होगा। यदि टर्न्स दूर-दूर हैं तो उसका 

इन्डक्टैन्स कम होगा।


(3) क्वाइल का क्षेत्रफल-क्वाइल का क्षेत्रफल अधिक होने पर भी क्वाइल का इन्डक्टैन्स अधिक होगा।



(4) क्वाइल का प्रकार-यदि क्वाइल खोखले 

फार्मर पर लपेटी हुई है तो उसका इन्डक्टैन्स 

कम होगा लेकिन यदि फार्मर के अन्दर नरम 

लोहे की कोर है तो उस क्वाइल का इन्डक्टैन्स 

अधिक होगा। कोर के अनुसार क्वाइल निम्न 

प्रकार की होती हैं.



 (अ) एयर कोर टाइप-यह खोखले बेलनाकार 

फार्मर पर इन्सुलेटिड वायर लपेटकर बनाई जाती है।


(ब) वेरिएबल डस्ट कोर टाइप-इस प्रकार की 

क्वाइल में फैराइट कोर (ferrite _core) प्रयोग 

करते हैं। इसमें फैराइट कोर और क्वाइल में 

फार्मर चूड़ीदार बना होता है, जिससे कोर 

घुमाकर क्वाइल का इन्डक्टैन्स कम-अधिक 

किया जा सकता है। 




(5) वाइण्डिंग का प्रकार

यदि वाइण्डिग करने के 

बाद उसके ऊपर पुनः विपरीत दिशा में 

वाइण्डिग की जाये तो उसका इन्डक्टैन्स कम 

हो जाता है।





इम्पीडेन्स (Impedance)

 किसी क्वाइल को ए. सी. वोल्टेज देने पर 

क्वाइल के इन्डक्टैन्स के कारण ए. सी. 

अवरोध तथा क्वाइल को डी. सी. अवरोध(R), 


दोनों के द्वारा करेन्ट के बहाव का विरोध 

इम्पीडेन्स कहलाता है। इम्पीडेन्स नापने की इकाई है।





टांसफार्मर (Transformer)


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 - ट्रांसफार्मर म्यूच्युअल इन्डक्टैन्स के 

सिद्धान्त पर कार्य करता है। यह केवल ए. 

सी. करेन्ट या सिगनल पर ही कार्य करता है

डी. सी. पर नहीं, क्योंकि डी. सी. सर्किट में 

म्यूच्युअल इन्डक्टैन्स नहीं होता। प्रत्येक 

ट्रांसफार्मर में दो प्रकार की क्वाइलें या 

वाइण्डिग होती हैं। एक साधारण ट्रांसफार्मर 

लेमिनेटिड कोर पर दो क्वाइलों से बनता है

जो निम्नलिखित हैं





(1) प्राइमरी (Primary)-जिस क्वाइल या 

वाइण्डिग को ए. सी. देते हैं, वह प्राइमरी 

क्वाइल कहलाती है।



(2) सैकेण्डरी (Secondary)-जिस क्वाइल या 

वाइण्डिंग से सप्लाई ली जाती है या जिस पर 

लोड देते हैं वह सैकेण्डरी क्वाइल कहलाती है। 

ट्रांसफार्मर में सैकेण्डरी क्वाइल की एक से 

अधिक वाइण्डिग भी हो सकती है।ट्रासफार्मर 

ट्रांसफार्मर में एक सर्किट की विद्युतीय उर्जा 

उसी फ्रीक्वेन्सी पर स्थानान्तरित (Transfer) 

कर दी जाती है। इसमें सर्किट की वोल्टेज को 

कम-अधिक करने के साथ-साथ इसके करेन्ट 

में भी परिवर्तन होता है।




ट्रांसफार्मर किस प्रकार कार्य करता है-

ट्रांसफार्मर की प्राइमरी और सैकेण्डरी क्वाइल 

में से किसी भी प्रकार का कोई इलेक्ट्रिकल 

कनैक्शन नहीं होता । ट्रांसफार्मर म्यूच्युअल 

इन्डक्टैन्स के सिद्धान्त पर कार्य करता है

जबकि प्राइमरी क्वाइल को ए. सी. करेन्ट से 

जोड़ते हैं तो उसमें करेन्ट प्रवाह होने पर 

चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है, जोकि सैकेण्डरी 

क्वाइल से सम्बंद्ध हो जाता है। क्वाइल से 

म्यूच्युअल इन्डक्टैन्स के कारण सैकेण्डरी 

क्वाइल में भी EMF इन्ड्यूस होता है।


प्राइमरी और सैकेण्डरी क्वाइल के टर्न्स के 

अनुपात में ही सैकेण्डरी वोल्टेज प्राप्त होती है।


ट्रांसफार्मर के लाभ- ट्रांसफार्मर के अनेक लाभ हैं, जो निम्न प्रकार हैं

(1) ट्रांसफार्मर का मुख्य लाभ यह है कि 

ट्रांसफार्मर द्वारा कम से कम ऊर्जा अपव्यय 

पर, वोल्टेज अथवा करेन्ट कोआवश्यकतानुसार 

कम-अधिक पर.सकते हैं और सरलतापूर्वक ए. 

सी. को एक स्थान से दूसरे स्थान तक 

पहुंचाया जा सकता है। 



(2) इसके रख-रखाव में कोई विशेष सावधानी 

नहीं रखनी पड़ती और इसमें टूट-फूट की 

शिकायत भी अत्यन्त कम होती है क्योंकि यह 

एक प्रकार से स्थैतिक उपकरण है।



(3) ट्रांसफार्मर में प्राइमरी क्वाइल से सैकेण्डरी 

क्वाइल को ऊर्जा का ट्रांसफर शोर रहित होता 

है, क्योंकि इसमें कोई यान्त्रिक भाग नहीं होता।



(4) ट्रांसफार्मर के प्रयोग से बने उपकरण की 

चैसिस पर इलेक्ट्रिकल शॉक लगने की 

सम्भावना नहीं होती।



ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण ट्रांसफार्मर का 


वर्गीकरण अनेक प्रकार से किया जा सकता है। 

कोर के अनुसार ट्रांसफार्मर को दो भागों में 

विभाजित किया जा सकता है




(1) आयरन कोर ट्रांसफार्मर- आयरन कोर 

ट्रांसफार्मर में नरम लोहे या फैराइट कोर का 

प्रयोग होता है। आयरन कोर प्रयुक्त ट्रांसफार्मर 

प्रायः लो-फ्रीक्वेन्सी सर्किट में प्रयोग होते हैं।




(2) एयर कोर ट्रांसफार्मर-एयर कोर ट्रांसफार्मर 

में एक साधारण खोखले इन्सुलेटिड फार्मर पर 

क्वाइल लपेटी जाती है, जिसमें आयरन कोर के 

स्थान पर हवा (air) माध्यम होती है। इस 

प्रकार के ट्रांसफार्मर हाई-फ्रीक्वेन्सी में प्रयोग 

होते हैं | R.F. क्वाइल्स इनके उदाहरण हैं। ...


आउटपुट वोल्टेज के अनुसार ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं

(1) स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर स्टेप डाउन 

ट्रांसफार्मर में प्राइमरी वाइण्डिग को दिये गये 

ए. सी. वोल्टेज की तुलना में सैकेण्डरी 

वाइण्डिग से कम वोल्टेज प्राप्त होते


इस प्रकार के ट्रांसफार्मर वाइण्डिग के टर्न्स 

प्राइमरी वाइण्डिग की तुलना में कम होते हैं। 

ट्रांजिस्टर, टेपरिकार्डर तथा टी. वी. प्रायः 

6V,12V ,24V इत्यादि वोल्टेज के स्टेप डाउन 

ट्रांसफार्मर प्रयोग में आते हैं।



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(2) स्टेप अप-ट्रांसफार्मर- यदि सैकेण्डरी 

वाइण्डिग की वोल्टेज प्राइमरी पर प्राप्त 

वोल्टेज से अधिक होती है तो ऐसा ट्रांसफार्मर 

स्टेप-अप (step-up) ट्रांसफार्मर कहलाता है। 

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर की सैकेण्डरी वाइण्डिंग 

में अधिक टर्न्स होते हैं, जिससे सैकेण्डरी 

वाइण्डग का इन्डक्टैन्स अधिक होने पर 

सैकेण्डरी में मुख्यतः प्रयोग इमरजेन्सी लाइट 

व अन्य उपकरणों में किया जाता है, जिन्हें 

इन्वर्टर ट्रांसफार्मर भी कहते है।

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कार्य के अनुसार ट्रांसफार्मर का वर्गीकरण निम्न प्रकार है
(1) आउटपुट ट्रांसफार्मर- आउटपुट ट्रांसफार्मर 

का प्रयोग रेडियो, टी. वी. इत्यादि में किया 

जाता है। इसका प्रयोग सर्किट में मैचिंग के 

लिये होता है। car amplifier, रेडियो या टी. वी. LED TV

में स्पीकर की वायस क्वाइल (Voice Coil) से 

सर्किट की मैचिंग के लिये आउटपुट 

ट्रांसफार्मर का प्रयोग करते हैं।


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(2) आई. एफ. टी. (Inter-mediate Frequency Transformer) - प्रायः आई. एफ. 

टी. का प्रयोग आई. एफ. एम्प्लीफायर विभाग 

में हाता है। यह आई. एफ. सिगनल को पास 

करता है। ट्रांजिस्टर में आई. एफ. टी. की 

फ्रीक्वेन्सी 450 KHz से 470 KHz के बीच होती है।

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आई. एफ. टी. एक निश्चित फ्रीक्वेन्सी पर 

कार्य करने के लिए बनाया जाती है। फ्रीक्वेन्सी 

एडजस्ट करने के लिए आई. एफ. ट्रांसफार्मर 

की प्राइमरी या सैकेण्डरी वाइण्डिंग के पैरेलल 

में एक कन्डेन्सर अवश्य लगाते हैं और 

वाइण्डिंग में चूड़ीदार कोर का प्रयोग करते हैं। 


कोर को घुमाकर एक निश्चित फ्रीक्वेन्सी 

प्राप्त की जा सकती है।  







(3) आटो ट्रांसफार्मर-इसमें प्राइमरी और 

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सैकेण्डरी की एक ही वाइन्डिंग होती है। जिसमें 

एक कॉमन टेपिंग होती है। प्राइमरी का एक 

तार कॉमन टेपिंग से जुड़ा होता है और इसी 

प्रकार सैकेण्डरी का एक सिरा भी कॉमन टपिंग 

से जुड़ा होता है। टी. वी. में प्रयोग होने पाला 

फ्लाई बैक या ई. एच. टी ट्रांसफार्मर एक आटो 

ट्रांसफार्मर है जो स्टेप-डाउन और दोनों कार्य 

करता हैं

ई. एच. टी. ट्रांसफार्मर 15,625 C/s की 

फ्रीक्वेन्सी पर कार्य करता है। इसकी सैकेण्डरी 

वाइण्डिम से विभिन्न वोल्टेज व सिगनल 

इत्यादि अलग-अलग प्राप्त कर सकते हैं।

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(4) पावर ट्रांसफार्मर- पावर ट्रांसफार्मर मेन 

220V ए. सी., 50Hz पर कार्य करते हैं । पावर 

ट्रांसफार्मर में एक प्राइमरी और दो या अधिक 

वाइण्डिग की सैकेण्डरी प्रयोग होती है। इस 

प्रकार के ट्रांसफार्मर में सैकेण्डरी में अलग-

अलग वोल्टेज के लिये अलग-अलग टेपिंग 

बनाई जाती हैं में टैक्सला में प्रयुक्त 

मेन ट्रांसफार्मर प्रदिर्शित किया गया है । 

इसकी सैकेण्डरी वाइण्डिंग में 0-6.5V, 0-12V, 

0-150v ए. सी. की तीन अलग-अलग टेपिंग 

प्राप्त होती हैं।पावर ट्रांसफार्मर 








(5) ड्राइवर ट्रांसफार्मर-ड्राइवर ट्रांसफार्मर या
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ड्राइवर ट्रांसफार्मर

मैचिंग ट्रांसफार्मर का प्रयोग दो विभागों की 

कपलिंग में इम्पीडेन्स मैचिंग के लिये किया 

जाता है। इसके प्रयोग से प्रथम स्टेज का 

आउटपुट इम्पीडेन्स दूसरी स्टेज के इनपुट 

इम्पीडैन्स के बराबर मैचिंग करता है।


- ड्राइवर ट्रांसफार्मर का प्रयोग ट्रांजिस्टर 

रिसीवर के साउण्ड आउटपुट विभाग में देखा 

जा सकता है । आडियो ड्राइवर विभाग से 

प्राप्त आडियो फ्रीक्वेन्सी सिगनल को ड्राइवर 

ट्रांसफार्मर द्वारा आउटपुट ट्रांजिस्टरों के बेस 

देते हैं। टी. वी. के हौरीजोन्टल डाइवर विभाग 

में भी ड्राइवर ट्रांसफार्मर का प्रयोग किया जाता 

है। हौरीजोन्टल ऑसीलेटर द्वारा उत्पन्न 

15,625C/s की फ्रीक्वेन्सी का सिगनल 

हौरीजोन्टल डाइवर विभाग द्वारा शक्तिशाली 

करने के पश्चात् ड्राइवर ट्रांसफार्मर द्वारा 

हौरीजोन्टल आउटपुट विभाग को देते हैं।



(6) आर. एफ. ट्रांसफार्मर-20KHz से अधिक फ्रीक्वेन्सी पर कार्य करने वाले __ ट्रांसफार्मर 

को आर. एफ. (Radio Frequency) ट्रांसफार्मर 

कहते हैं । ट्रांजिस्टर रिसीवर ___ में प्रयुक्त 

ऑसीलेटर और एन्टीना क्वाइल्स आर. एफ. 

ट्रांसफार्मर के उदाहरण हैं |



ट्रांसफार्मर की क्षतियां

 ट्रांसफार्मर में मुख्यतः तीन प्रकार की क्षतियां होती हैं, जो निम्न प्रकार हैं


(1) एडी करेन्ट क्षतियां (Eddy Current 

Losses)-ट्रांसफार्मर के निर्माण में नरम लोहे 


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की कोर (Soft Iron Core) का प्रयोग होता है

जो विद्युत का एक अच्छा चालक है। जब 

ट्रांसफार्मर कार्य करता है तो कोर में थोड़ा-सा 

करेन्ट बहना, एडी करेन्ट कहलाता है। एडी 

करेन्ट के कारण चुम्बकीय फ्लक्स में होने 

वाला अपव्यय एडी करेन्ट क्षति कहलाती है।


एडी करेन्ट क्षति से बचने के लिये आयरन 

कोर को लेमिनेटिड (laminated) किया जाता है 

और प्रत्येक कोर के बीच वार्निश इत्यादि की 

इन्स्यूलेटिंग होती है।






(2) हिस्टीरिसिस क्षति (Hysteresis Loss)

चुम्बकीय सिद्धान्तों के अनुसार जब कोर 

के ऊपर लिपटी क्वाइल में ए. सी. प्रवाहित 

होती है, तो कुछ उर्जा ताप के रूप में कोर में 

उत्पन्न होती है, जिसे हिस्टीरिसिस क्षति कहते 

हैं। नरम सिलिकॉन स्टील की कोर का प्रयोग 

करके इस हिस्टीरिसिस क्षति को कम किया 


जा सकता है। घटिया कोर से बने ट्रांसफार्मर 


कुछ देर कार्य करने के बाद ही अत्यधिक गर्म 

हो जाते हैं, जबकि उच्च स्तर की कोर प्रयोग 

करने पर ट्रांसफार्मर कम गर्म होते हैं।




(3) कॉपर क्षति (Copper Loss)-ट्रांसफार्मर की 

वाइण्डिग में प्रायः कॉपर की वायर प्रयोग होती 

है। कॉपर की वायर की रैजिस्टेन्स के कारण 

जो वैद्यतिक शक्ति अपव्यय होती है, उसे 

कॉपर क्षति कहते हैं।



क्वाइल सीरीज में

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जब दो या दो से अधिक क्वाइल सीरीज में 

के अनुसार जोड़ी जाती । हैं तो सभी 

क्वाइल के इन्डक्टैन्स के योग के बराबर कुछ 

इन्डक्टैन्स प्राप्त होगा।


                 LT = L1+L2+L3+……LN

        यहां L,T = कुल इन्डक्टैन्स
                 L,N = क्वाइल की संख्या



क्वाइल पैरेलल में



जब दो या अधिक क्वाइलों को पैरेलल में 


जोड़ा जाये तो कुल इन्डक्टैन्स सबसे कम 

इन्डक्टैन्स वाली क्वाइल से भी कम प्राप्त होता है।

          1/L = 1/L1 + 1/L2 + 1/L3 + 1/LN
             यहां LT, = कुल इन्डक्टैन्स
                  LN, = क्वाइल की संख्या
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शील्डिंग (Shieldino) 


क्वाइल इत्यादि को एल्यूमीनियम के खोल का 




कैन चढ़ाकर प्रायः शील्ड किया जाता है। जब 




क्वाइल को करेन्ट देने पर चुम्बकीय क्षेत्र 




उत्पन्न होता है तो वह चुम्बकीय क्षेत्र शील्ड 




मे से भी गुजरता है जिसरो शील्ड में EMF के 



कारण इन्ड्यूस्ड करेन्ट प्रवाहित होती है, जो 




क्वाइल द्वारा उत्पन्न मूल चुम्बकीय क्षेत्र का 




विरोध करती है और उसे शील्ड से बाहर नहीं 




फैलने देती, जो कि शील्ड का कार्य है। इस 




प्रकार शील्ड के प्रयोग से RFट्रांसफार्मर 




इत्यादि का चुम्बकीय क्षेत्र अधिक विस्तृत न 





होकर एक अनैच्छिक कपलिंग बनने से रोकना है












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