Headphone and Speaker Information in hindi
ध्वनि
(Sound)
ध्वनि
उसे कहते हैं जिसे सुना जा सकता है
ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है किसी भी प्रकार
की
ध्वनि हवा में उसके कम्पनों द्वारा उत्पन्न
होती है, जिसको सुनकर हम यह अनुभव
करते
हैं कि हम किसी
भी तरह की ध्वनि सुन रहे
हैं ध्वनि बोलने, गाने,
यन्त्र इत्यादि बजाने,
मानव, पशु-पक्षी व प्रकृति द्वारा उत्पन्न होती
है या किसी प्रकार से वस्तु पर
प्रहार करने से
अथवा दो या दो से अधिक वस्तुओं के आपस
में टकराने तथा अन्य प्रकार
से ध्वनि उत्पन्न
होती है ध्वनि की लहरें ठीक उसी प्रकार की
होती हैं जिस प्रकार
तालाब में कंकड़ डालने
पर चलती हुई गोल लहर दिखाई देती है
ध्वनि
की गति-
ध्वनि को चलाने के
लिये किसी न किसी
माध्यम की आवश्यकता होती है आवाज पैदा
करने के लिए हवा एक कॉमन
माध्यम है
हवा वस्तु और कानों के बीच कम्पनों का
वाहक है इसके अतिरिक्त द्रव व
ठोस वस्तु
भी ध्वनि के माध्यम हैं शून्य स्थान मेंध्वनि
नहीं चल सकती हवा में
ध्वनि की गति 332
मीटर/सेकेण्ड होती है हवा के अतिरिक्त अन्य
शेष माध्यमों में ध्वनि की गति भिन्न होती
है ध्वनि ठंडे
माध्यम की अपेक्षा गर्म माध्यम
में और अधिक तेज चल सकती है 20°
सेल्सियस पर 344.1 मीटर/सेकेण्ड, जबकि
980° सेल्सियस पर 701
मीटर/सेकेण्ड गति
रहती
है ध्वनि द्रव में हवा और अन्य गैसों
की अपेक्षा अधिक तेज चलती है और ठोस
पदार्थों में तो द्रवों की अपेक्षा अधिक तेज
चलती है एक निश्चित ताप पर ध्वनि की
गति लोहे में 4667
मीटर/सेकेण्ड तथा पानी
में 1454
मीटर/सेकेण्ड होती है
-
ध्वनि को उत्पन्न करने
वाले साधन में
उसका कोई न कोई भाग इस प्रकार का
अवश्य होता है जो कि कम्पन पैदा
करता है
और यह कम्पन ही ध्वनि तरंगें पैदा करती
ध्वनि तरंगों का वर्गीकरण-
ध्वनि
तरंगों (sound
waves) कीफ्रीक्वेन्सी
16C/s से 20KC/s होती है यदि कोई
वस्तु एक सेकेण्ड में सोलह बार से कम
कम्पन
करती
है तो उससेध्वनि की तरंगें उत्पन्न
नहीं होंगी 16 C/s से कम और 20,000
C/s से अधिक फ्रीक्वेन्सी हमारे कान नहीं
सुन
सकते16C/s
कम की फ्रीक्वेन्सी
अश्रव्य (Infrasonic)
तरंगें व 20 KC/s से
अधिक की फ्रीक्वेन्सी पराश्रव्य
(ultrasonic) फ्रीक्वेन्सी कहलाती हैं
निम्न
आवृति पर ध्वनि भारी और अधिक
आवृति पर ध्वनि तीखी होती है यदि एक
सेकेण्ड में 100 कम्पन्न हो रहे हैं तो यह
कहा जायेगा कि ध्वनि
की आवृत्ति
(fraguency)
100 कम्पन प्रति सेकेण्ड
है
(1)
आवृति (Frequency)-
एक कण द्वारा एक सेकेण्ड में पूरे होने
वाले
या कम्पनों की संख्या उसकी आवृति
कहलाती है इसका प्रतीक 'F' तथा मात्रक हर्ट्ज (Hz) है
(2)
गति (Velocity)-
एक सेकेण्ड में कोई तरंग जितनी सीधी
दूरी तय
करती है,
उसकी गति कहलाती है
ध्वनि की गति 332
मीटर प्रति सेकेण्ड या
1088 फूट प्रति सेकेण्ड होती है
(3)
तंरग दैर्ध्य (Wave Length)-
तंरग दैर्ध्य या तरंग की लम्बाई की
परिभाषा एक
ही है समान फेज में कम्पन
करने वाले दो निकटतम क्रमागत कणों के
बीच की
दूरी को वेव लैन्थ कहते हैं इसका
प्रतीक 2 (लैम्डा) और मात्रक मीटर होता
है में 1 और 3 बीच का अन्तर वेव लैन्थ है
(4)आयाम (Amplitude)
प्रत्येक कण का अपनी विराम अवस्था से
अपनी
किसी एक ओर अधिक से
अधिक जितना अन्तर तय होता है, उसे
उस वस्तु या कण का आयाम कहते हैं
में A-B या C-D
वेव का आयाम है
(5) चक्र (Cycle)
एक तरंग दैर्ध्य का रास्ता तय करने के लिए
तरंग जिस रास्ते से होकर चलती है, उसे एक
चक्र कहते हैं में 1
से 3 तक एक
पूर्ण चक्रध्वनि
की विशेषतायें-वह ध्वनि जो
कान को सुनने में मधुर लगती है और
आनन्दमय होती है, जिसको सनने में किसी भी
प्रकार की परेशानी
महसूस नहीं होता,
वह
ध्वनि 'संगीतमय ध्वनि' कहलाती है वे आवाज
जो सुनने मेंअच्छी नहीं
लगता हैं वे नियमित
ध्वनि 'शोर' कहलाती हैं विपरीत परिस्थितियों
में कोई भी ध्वनि हमारे लिये संगीतमय भी
हो
सकती है और शोर भी कहला सकती है; जैसे-
सायरन आवाज यदि सायरन उचित समय
पर बज रहा है तो वह सही है यदि
उसकी
आवाज खराब है या वह उचित समय पर नहीं
बज रहा है तो उसे सुनने में शोर का
अनुभव
होगा इस प्रकार ध्वनि की विशेषताओं को
तीन वर्गों में बांटा जा सकता है, जो निम्न प्रकार हैं
(1)
तीव्रता (Intensity or
Loudness)-
तीव्रता ध्वनि का वह
गुण है जिसके द्वारा
ध्वनि मन्द या तीव्र सुनाई देती है ध्वनि की
प्रबलता या
तीव्रता अनेक कारणों से आकर्षित
होती है हल्का कम्पन पैदा होने पर ध्वनि की
तीव्रता कम होगी इस प्रकार विभिन्न प्रकार
की ध्वनि की तीव्रता में अन्तर हो सकता
है,
जिसको केवल यन्त्रों द्वारा ही मापा जा सकता
है प्रत्येक साउण्ड उपकरण में ध्वनि की
तीव्रता को नियन्त्रित करने के लिये
प्रबलता
नियन्त्रक (Volume
Control) लगाया जाता है,
जिससे श्रोता अपनी आवश्यकतानुसार ध्वनि
की
तीव्रता कम-अधिक कर सकता है
तीव्रता
को बेल में नापते हैं बेल बड़ी इकाई
है बेल के दसवें भाग को डेसीबेल (decibel)
कहते हैं इसका प्रतीक db है
(2)
पिच (Pitch)-
पिच (तारत्व) वह अनुभूति है जो इस बात का
ज्ञान कराती है कि ध्वनि स्रोत से उत्पन्न
ध्वनि मोटी है अथवा बारीक (क्षीण) किसी
ध्वनि की फ्रीक्वेन्सी जितनी अधिक होती है,
पिच उतनी ही अधिक होती है और इसी प्रकार
फ्रीक्वेन्सी जितनी कम होगी पिच
उतनी ही
कम होगी ऊंचे पिच वाली आवाज बारीक
(shriel voice) व नीचे पिच वाली आवाज मोटी
(bass voice) रहती है इस प्रकारआवाज
का
मोटा व बारीक होना ध्वनि स्रोत की फ्रीक्वेन्सी
पर निर्भर करता है उदाहरण-मच्छरों की
भिनभिनाहट ऊंचे पिच की व शेर की दहाड़
नीचे पिच की होती है इसी
प्रकार कोयल की
कूक ऊंचे पिच की, तथा उसकी तुलना में गाय के
रम्भाने
की आवाज नीचे पिच की होती है इस
प्रकार विभिन्न ध्वनियों की पिच में अन्तर
होने
के कारण ध्वनि की पहचान की जाती है
(3)
क्वालिटी (Quality)-
क्वालिटी या टिम्बर किसी भी संगीत ध्वनि
की वह
विशेषता होती है जो अलग-अलग
यन्त्रों द्वारा पैदा की गयी ध्वनि को एक समान पिच
और
फ्रीक्वेन्सी पर भी भिन्नता पैदा कराती
है इसी प्रकार वायलन और सितार की आवाज
की
भिन्नता को अलग-अलग अनुभव करते हैं,
जबकि दोनों की फ्रीक्वेन्सी एक ही हो
हाई फाइडैलिटी साउण्ड (High-fidelity Sound)-
हाई फाइडैलिटी साउण्ड या हाई-फाई (Hi-Fi)
ध्वनि उसे कहते हैं, जिसमें सभी मूल तथा
हार्मोनिक (harmonic) ! फ्रीक्वेन्सीज उपस्थित
हों केवल वह
एम्प्लीफायर सिस्टम हाई-फाई
के गुणों से युक्त माना जा सकता है, जो
ध्वनि में मिश्रित उच्च व निम्न
फ्रीक्वेन्सियों
को एक ही अनुपात में शक्तिशाली करे और
श्रोता द्वारा विभिन्न
फ्रीक्वेन्सियों कीध्वनियों
को पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होनी
चाहिए, जैसे बांसुरी की मधुर तान और मृदंग
की थाप
आदि अच्छे हाई-फाई सिस्टम युक्त
एम्प्लीफायर के साथ एक से अधिक छोटे-बड़े
आकार के
स्पीकर व विशेष प्रकार के स्पीकर
बॉक्स का भी प्रयोग करना चाहिए
प्रतिध्वनि
(Echo)-
जिस तरह प्रकाश तरंगें किसी दर्पण (mirror)
से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं, उसी प्रकार
ध्वनि तरंगें भी किसी माध्यम से
टकराकर
वापस आ सकती हैं,
जो वापस आकर एक या
अधिक
बार सुनाई देती हैं ध्वनि तरंगों के
वापस आकर पुनः सुनाई देने वाली ध्वनि
प्रतिध्वनि कहलाती है आपने कई बार पहाड़ों
पर तेज बोलने पर ध्वनि वापस आकरअवश्य
सुनी होगी प्रतिध्वनि उसी समय ही स्पष्ट
सुनाई देती है जब परावर्तक तल का
क्षेत्रफल
अधिक होता है और बोले हए शब्द छोटे और
अधिक आवृत्ति के होते हैं प्रतिध्वनि हमेशा
वही कोण बनाकर वापस आती है जिस कोण
से वह माध्यम से टकरायी थी प्रतिध्वनि की
गति भी मल ध्वनि के समान हवा में 332
मीटर/सैकेण्ड होती है
ध्वनि
का प्रसारण (Broadcasting
of Sound)
ट्रांसमीटर द्वारा
ध्वनि का प्रसारण करने से
पूर्व ध्वनि संकेतों का यथोचित एम्प्लीफिकेशन
आवश्यक होता है प्रसारण केन्द्रों
में प्रसारण
कक्ष पूर्णतः ध्वनिरोधी (Sound Proof) बनाये
जाते हैं जिससे अनावश्यक ध्वनियां
प्रसारण
कक्ष में प्रवेश न कर सकें प्रसारण केन्द्रों में
माइक्रोफोन, रिकार्ड प्लेयर, टेपरिकार्डर व
एम्प्लीफायर इत्यादि सभी उपकरण
अत्यन्त
उच्च कोटि वाले प्रयोग किये जाते हैं जिससे
ध्वनि की मूल तथा हार्मोनिक
फ्रीक्वेन्सीज
यथावत्
डायनामिक माइक्रोफोन की बनावट परमानेन्ट
मैग्नेट स्पीकर की तरह होती है यह फैराडे के
विद्युत चुम्बकीय इन्डक्शन के
सिद्धान्त पर
कार्य करता है इसमें एक शक्तिशाली
मैग्नेट के दोनों ध्रुवों के
बीच एक क्वाइल लगी
होती है,
जिसका सम्बन्ध
डायफार्म से होता है
डायफार्म के सामने ध्वनि पैदा करने पर यह
कम्पन करता है
जिससे डायफार्म ध्वनि लहरों
को मैकेनिकल एनर्जी में बदल देता है
डायफार्म के
कम्पन करने पर उसके साथ जुड़ी
क्वाइल भी चुम्बकीय फील्ड में कम्पन करती
है, जिसके कारण क्वाइल के दोनों सिरों पर
सिगनल वोल्टेज पैदा होते हैं यह माइक्रोफोन
सामने से आती हुई ध्वनि को आसानी से
पकड़ पाते हैं इसकी फ्रीक्वेन्सीसपान्स
भी
अन्य माइक्रोफोन की तुलना में अधिकअच्छी
रहती है और यह मजबूत क्वाइल के
साथ-
साथ उच्च तापक्रम व नमी में भी आसानी से
खराब नहीं होते को
इस प्रकार के
माइक्रोफोन में डायफार्म का
प्रयोग नहीं होता, बल्कि डायफार्म के स्थान पर
एल्यूमीनियम से बना एक नालीदार रिबन दो
चुम्बकों के चुम्बकीय क्षेत्र के बीच में फंसा
रहता है इस प्रकार के माइक्रोफोन
के सामने
ध्वनि पैदा करने पर इस रिबन में कम्पन पैदा
होता हैं और यह कम्पन
चुम्बकीय क्षेत्र को
काटता है, जिससे विद्युतीय उर्जा उत्पन्न होती
है चुम्बकीय
क्षेत्र में,
रिबन की कम्पन दिशा के
लम्बवत् रहने से यह माइक्रोफोन दोनों | ओर
से एक समान रूप में कार्य करता है
ईयरफोन, डायनामिक लाउडस्पीकर का अत्यन्त
लघु रूप होता है इसे कान में लगाकर प्रयोग
करते हैं इसे ट्रांजिस्टर,
टेपरिकार्डर इत्यादि के
अतिरिक्त श्रवण यन्त्रों (hearing
aid) के साथ भी प्रयोग करते
हैं
हैडफोन, जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता
है, इसे सिर पर लगाकर प्रयोग करते हैं
हैडफोन सिर पर इस प्रकार लगाना चाहिये
है
कि इसमें लगे स्पीकर दोनों कानों पर आ
जाएं हैडफोन से केवल वही व्यक्ति ध्वनि
सन सकता है जिसके कानों पर यह लगा होता
है इसलिये इसका प्रयोग मख्यतः टेलीफोन
वायरलेस व मिनी टेपरिकार्डर, ट्रांजिस्टरों के
साथ देखा जा सकता है सय नर्म लोहे की
पतली चादर से बना
डायफार्म हैडफोन के केस
में इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि
वह सरलतापूर्वक
कम्पन कर सके मोनो मोड
में प्रयक्त हैडफोन में दोनों साइड की
क्वाइल को सीरीज
में जोड़ते हैं और उनकी
तारें ई. पी पिन से जोड़ देते हैं यदि स्टीरियो
हैडफोन है
तो दोनो तरफ के डायफार्म
अलग-अलग
चैनल से जुड़ते हैं
स्पीकर का कार्य माइक्रोफोन या अन्य किसी
उपाय
द्वारा भेजे गये विद्युत कम्पनों
को
ध्वनि उर्जा में बदलना है,
जिसे हमारे कान
सुन
सकते हैं स्पीकर के प्रयोग के बिना कोई
भी ध्वनि उपकरण कार्य नहीं कर सकता
इसलिये प्रत्येक ट्रांजिस्टर, रेडियो टेपरिकार्डर,
स्टीरियो, टेलीविजन इत्यादि के साथ स्पीकर
का प्रयोग
अवश्य होता है वर्तमान समय में
अधिकतर स्थायी चुम्बक युक्त स्पीकर
(permanent magnet
types speaker) का ही
प्रयोग होता है स्थायी चुम्बक युक्त स्पीकर के मुख्य भाग निम्न प्रकार
हैं
1.
फ्रेम, 4. स्थायी चुम्बक,
2, स्पाइडर, 5. वायस क्वाइल (Voice coil)
3. पेपर कोन, 6. धूल रोधक
7. पोल पीस
स्थायी चम्बत स्पीकर में एक गोल या चपटे
आकार वाली एक बहुत शक्तिशाली स्थायी
चुम्बक प्रयोग होती है, जिसके ध्रुव प्रायः
गोलाकर होते हैं, जिसमें एक ध्रुव बीच में और
दूसरा ध्रुव चुम्बक के
चारों ओर होता है ध्रुव
के बीच में खाली स्थान होता है, जिसे नेरो
एयर गेप कहते - हैं प्रत्येक
स्पीकर की
बनावट फनल या कीप टाइप होती है, अतः
इसी बनावट का फ्रेम बनाया जाता है पेपर
या प्लास्टिक के फार्म पर 38 SWG की वायर के 52 टर्न्स
26-26
टर्न्स, दो सतहों में लपेटकर वायस
क्वाइल बनाई जाती
है क्वाइल को एक
स्पाइडर (झिल्ली) के साथ खाली स्थान में इस
प्रकार फिट करते हैं
कि वह आसानी से ऊपर-
नीचे सरक सके क्वाइल पेपर कोन व स्पाइडर
के साथ रिक्त स्थान
में इस प्रकार लगाई
जाती है कि वह अपनी लम्बाई की दिशा
स्वतन्त्रतापूर्वक कम्पन कर
सके
वायस क्वाइल
को दी गई ऑडियो फ्रीक्वेन्सी
सिगनल की फ्रीक्वेन्सी के अनुसार क्वाइल व
उससे जुड़े पेपर कोन में कम्पन्न
पैदा होते हैं
पेपर कोन के चारों ओर - कोरूगेशंस
(corrugations) बने होते हैं, जो इसे कम्पन्न
करने में मदद करते हैं ऑडियो फ्रीक्वेन्सी
के अनुसार पेपर कोन इत्यादि के
कम्पन
अपने सम्पर्क की वायु की एक -बड़ी मात्रा को
कम्पन करते हैं, जिससे हमें ऑडियोफ्रीक्वेन्सी
सिगनल के
अनुसार ध्वनि
सुनाई देती है
ए. सी. या डी. सी. करेन्ट के अनुसार स्पीकर
से अलग-अलग आवाज
सुनाई देती है ए. सी.
करेन्ट की फ्रीक्वेन्सी के अनुसार ही स्पीकर से
आवाज
उत्पन्न होती है कम-अधिक वोल्टेज
के अनुसार पेपर कोन की गति तथा क्लिक
की आवाज भी
कम-अधिक होती है रंगीन
टी. वी. रिसीवरों में प्रयोग होने वाले स्पीकरों
की चुम्बक के
ऊपर अचुम्बकीय पदार्थ
(Non-Magnetic
Material)
की सतह लगाई जाती है कलर - पिक्चर
ट्यूब के निकट चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होने से
रंगों पर धब्बे नजर
आने लगते हैं,
जिन्हे
कलर पैच कहते
हैं तर
स्पाकर बनाने या रिपेयर (Re-coning) करने की विधि-
स्पीकर में प्रयुक्त - क्वाइल का खराब हो
जाना, पेपर कोन फट जाना या एयर गैप में धूल या लोहे
के
कण आ
जाना, इत्यादि स्थिति में स्पीकर में
लगी क्वाइल, स्पाइडर (spider) व पेपर कोन
की सैटिंग दुबारा करनी पड़ती है स्पीकर री-
कोनिंग का कार्य रोजगार का साधन
भी बन सकता है इसका व्यवसाय
अत्यन्त कम पूंजी से प्रारम्भ किया जा सकता
है थोड़े से अभ्यास के बाद इस कार्य में
दक्षता प्राप्त की जा सकती है स्पीकर
री-कीनिंग
करने की सरल विधि निम्न प्रकार है
(1)
स्पीकर विभिन्न साइजों
में आते हैं
विभिन्न प्रकार व आकार के स्पीकर व
अनुसार क्वाइलें भी अनेक आकार की
आती
हैं विभिन्न साइजों के अनुसार मुखप्रयोग में
आने वाली क्वाइलों का वर्गीकरण
निम्न प्रकार है-
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| Headphone and speaker information in hindi |
(2)
उचित साइज की क्वाइल
लेकर पोल पीस
के चारों तरफ वाले खाली स्थान (air gap) में
इस प्रकार व्यवस्थित (adjust) करनी चाहिये
कि वह सरलता से ऊपर नीचे सरक सके
क्वाइल को एयर गैप में इस प्रकार एडजस्ट
करें कि क्वाइल का इतना भाग बाहर निकला
रहे, जिससे क्वाइल के बाहर निकले किनारों
पर
स्पाइडर तथा पेपर कोन के किनारे सरलता
से चिपक सकें और क्वाइल एयर गैप में
स्वतन्त्रतापूर्वक गति कर सके कठोर कागज
या नोन मैग्नेट पदार्थ के बने शिम्स (shims)
या फिल्म निगेटिव के टुकड़े काटकर क्वाइल
के
अन्दर की ओर एयर गैप. में लगाकर
क्वाइल उचित स्थान परस्थिर कर दें
(3) क्वाइल को एयर गैप में स्थिर कर देने के
पश्चात् स्पाइडर को क्वाइल और - फ्रेम के
साथ चिपका दें
(4)
स्पाइडर सैट कर देने के
पश्चात् पेपरकोन
को क्वाइल और फ्रेम से चिपका
(5)
क्वाइल के दोनों तार
पेपर कोन पर चिपका
दें फालतू वायर काट देनी चाहिए पेपर कोन
पर दोनों तारों के
बीच दूरी रखें और तार
कन्क्शन स्ट्रिप की तरफचिपकायें पेपर कोन
पर चिपकाई हुई तार से कनैक्शन स्ट्रिप जो
कि फ्रेम पर लगी होती है, स्पीकर में प्रयोग
होने वाली विशेष वायर लगा
दें, जो कम्पन्न
होने पर टूटती नही
(6) पेपर कोन के बीच वाले खाली भाग में
एक डस्ट कैप चिपका दें डस्ट कैप लगाने
के
बाद धूल इत्यादि अन्दर नहीं जाती
(7) स्पीकर का प्रयोग रिकॉनिंग होने के 4-5
घण्टे पश्चात् ही करना चाहिये यह जांच करने
के लिये स्पीकर में क्वाइल
इत्यादि की सैटिंग
सही है या नहीं, पेपर कोन को उंगलियों की
मदद से अन्दर की ओर हल्का दबाव डालें
यदि पेपर
कोन उंगलियां हटाने पर स्वयं ऊपर
वापस आ जाती है और ऊपर-नीचे पेपर कोन
के साथ
क्वाइल व स्पाइडर भी स्वतन्त्रापूर्वक
गति करते हैं तो स्पीकर सही कार्य करेगा
स्पीकर को किसी भी टेप या रेडियो इत्यादि
पर चैक करें यदि आवाज कम आती है या
सीकर
से चर-चर की आवाज आती है तो
इसका अर्थ है कि स्पीकर की रिकॉनिंग में
कहीं कमी रह
गई है
8) स्पीकर की रिकॉनिंग शुरू करने से पहले
स्पीकर साइज के अनुसार स्पाइडर, क्वाइल व
पेपर कोन के साइज का चुनाव कर लें
के अनुसार लकड़ी का सैटर भी
अपने पास रखें इस सैटर को क्वाइल,
पेपर
कोन, स्पाइंडर आदि के केन्द्र में हए छिद्र
में
डालकर साइज और आकार की सैटिंग सही
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